Noise Pollution: Expert bite on AIR with Environmentalist SD Virendra, ITDC India Epress

Noise pollution, also known as environmental noise or sound pollution, is the propagation of noise with harmful impact on the activity of human or animal life. The source of outdoor noise worldwide is mainly caused by machines, transport (especially planes) and propagation systems. ध्वनि प्रदूषण या अत्यधिक शोर किसी भी प्रकार के अनुपयोगी ध्वनियों और पसंद न की जाने वाली ध्वनि को ध्वनि शोर-शराबा कहा जाता है। जिससे मानव और जीव जन्तुओं को परेशानी होती है। ध्वनि प्रदूषण पूरे विश्व की समस्या बन चुका है, 40 डेसीबल से ऊपर की तेज और असहनीय आवाज को ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में रखा जाता है। कारण : यातायात, वाहनों की संख्या में भी वृद्धि शहरों में बढ़ता ट्रैफिक, दुनिया भर में सबसे ज्यादा शोर के स्रोत परिवहन प्रणालियों, प्रेशर हॉर्न का उपयोग, मोटर वाहन का शोर है, जनसंख्या, खराब शहरी नियोजन (urban planning) ध्वनि प्रदूषण को बढा सकता है, ध्वनि प्रदूषण उद्योगों में लगी बड़ी मशीनों, हॉर्न, शादी पार्टियों, प्रचार प्रसार, त्योहारों में लाउडस्पीकर और पर्यावरण को नष्ट किया जाना भी कारण है पटाखों की फटने की आवाज से बुजुर्गों एवं छोटे बच्चों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। हमारे देश के सबसे बड़े त्यौहार दीवाली पर 2015 में किए गए एक सर्वे के अनुसार पटाखों के फटने के कारण 123 डेसीबल तक आवाज चली जाती है। जबकि 80 डेसिबल से ज्यादा आवाज होने पर मनुष्य बहरेपन का शिकार हो सकता है शोर आमतौर पर बढ़े हुए शहरीकरण और विकास का एक उप-उत्पाद है। शोर जलीय और स्थलीय निवास के ध्वनिक वातावरण को बदल सकता है। शहरों और रोडवेज में पुराने शोर के स्तर के कारण पक्षी विविधता में गिरावट आई है। हमारी पूरे देश में ध्वनि प्रदूषण ने एक महामारी की तरह पैर पसार लिए है, अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले पीढ़ी को इसके भयंकर परिणाम भुगतने होंगे। यह एक धीमा जहर की तरह जो धीरे-धीरे मानव स्वास्थ्य को खराब करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य को मानसिक विकार जैसे चिड़चिड़ापन, नींद ना आना मानसिक परेशानी होने लगती है। जैसे कि सर दर्द, यादाश्त कमजोर हो जाना आदि हो सकते है और साथ ही शारीरिक विकार जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, रक्त प्रवाह की गति धीमी होना जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी होता है। अत्यधिक शोर वन्य जीव जंतुओं की दिनचर्या पर भी प्रभाव डालता है उनकी आदतों में बदलाव आता है, खाने-पीने संबंधी समस्या और उनकी प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक शोर के कारण हमारे वातावरण में रहने वाले हैं पशु पक्षियों को भी समस्या होती है। आपने देखा होगा कि कई पशु लाउडस्पीकर चलते ही इधर-उधर को कूदने लग जाते है इससे साफ होता है कि उनको तेज आवाज से बहुत परेशानी होती है। ध्वनि प्रदूषण के कारण पशु पक्षियों के खाने पीने में, प्रजनन क्षमता, रहन सहन में काफी बदलाव आ जाता है। समुंद्र में सेनाओं के लगातार अभ्यास के कारण चोंचदार व्हेल नामक प्रजाति का अस्तित्व खतरे में है। ध्वनि प्रदूषण केवल मानव जाति के लिए ही घातक नहीं है यह अन्य जीव जंतुओं के लिए भी उतना ही घातक है। इसे वन्य जीव जंतुओं की दिनचर्या प्रभावित होती है। ध्वनि प्रदूषण के रोकथाम के उपाय – Dhwani Pradushan ke Roktham ke Upay ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए हमें अधिक मात्रा में पेड़ पौधे लगाने चाहिए क्योंकि पेड़ पौधे 10 से 15 डेसीबल की आवाज को रोक लेते है। हमें कम आवाज करने वाली मशीनों का उपयोग करना चाहिए। ज्यादा शोर करने वाले उद्योग-धंधों को साउंड प्रूफ इमारत में स्थापित करना चाहिए। पुरानी और खस्ताहाल वाहनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। लाउडस्पीकरों का उपयोग कम करना चाहिए। अनावश्यक हॉर्न नहीं बजाना चाहिए। हमारे देश में छोटे बड़े वाहनों को मिलाकर वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है।वाहन भी अपनी क्षमता के अनुसार कम ज्यादा ध्वनि प्रदूषण करते है। हमारे भारत देश में वर्ष 1950 में कुल वाहनों की संख्या करीब 30 लाख थी। और जैसे-जैसे हमारा देश विकसित हो रहा है वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। अनुमान है प्रतिदिन छोटे बड़े वाहनों को मिलाकर प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख वाहनों का पंजीकरण किया जाता है। संपूर्ण भारत में वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार 25 करोड़ लगभग वाहन पंजीकृत हैं। आजकल लोग अपने वाहनों में तीखी आवाज वाले हॉर्न लगवाते है

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